मजनूँ ने शहर छोड़ा है सहरा भी छोड़ दे

मजनूँ ने शहर छोड़ा है सहरा भी छोड़ दे 
मजनूँ ने शहर छोड़ा है सहरा भी छोड़ दे 
नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे 
वाइज़ कमाले-तर्क  से मिलती है याँ मुराद 
दुनिया जो छोड़ दी है तो उबक़ा भी छोड़ दे 
तक़लीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुदकुशी
रस्ता भी ढूँढ, ख़िज़्र का सौदा  भी छोड़ दे 
शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल 
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे 
सौदागरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बेख़बर जिज़ा0 की तमन्ना भी छोड़ दे 
अच्छा है दिल के पास रहे पास्बाने-अक़्ल 
लेकिन कभी-कभी उसे तन्हा भी छोड़ दे 
जीना वो क्या जो हो नफ़्से-ग़ैर पर मदार 
शोहरत की ज़िन्दगी का भरोसा भी छोड़ दे 
वाइज़ सबूत लाए जो मय के जवाज़ में
इक़बाल को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे
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